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Thursday, March 27, 2014

अबकी बार....

अब तो
कदम-कदम पर ही कुरुक्षेत्र है
और पल-पल के खरवबें हिस्से को भी
कैप्चर पर कैप्चर करता हुआ
संजयों का टेलीस्कोपी नेत्र है
हर कैरेक्टर से लेकर हर कास्ट में
वही दुर्लभ-सा मिलाप है
और हर निगेटिव का हर पॉजिटिव के लिए
अट्रैक्शन वाला भी वही विलाप है
ओवर एक्साइटेड वेद व्यास जी
या तो पायरेसी के शिकार हुए हैं
या फिर उनके दिमाग पर ही
विदेशी वायरस का हमला हुआ है
ऊपर से इतना चकर-मकर सुन कर
चूहे की पूंछ पकड़ कर अपने गणेश को
चकर-घिरनी सा खोज रहे हैं
पर लगता है कि गणेश जी
कोड ऑफ कंडक्ट के डर से
आई-फोन या लैप-टॉप से ही
चढ़ाये लड्डू को एक्सेप्ट कर रहे हैं
दूसरी तरफ ये भी लगता है कि
सोशल साइट्स के व्यूह में
प्यारे कृष्णा का फंसना तो तय है
और आगे जो शकुनी-दुर्योधन डिक्लेयर होंगे
वे तो युधिष्ठिर-अर्जुन को
पब्लिकली लाइक करके अपना
अगला विजन क्लीयर करेंगे
और ये भी लगता है कि
अबकी बार द्रौपदी भी
कंडीशनर के ओल्ड कंडीशन से
हाइड होकर कम्प्रोमाइज कर लिया है
और अकेले ही गंगोत्री में जाकर
बालों में शैम्पू करने का प्लान बना चुकी है .


Saturday, March 22, 2014

क्षणिकाएँ ...

इस जगत सरोवर में
जिसमें जैसी तरंग का
उत्थान होता है
ठीक उसी के अनुसार
उसका पतन भी होता है

        ***

भौतिक सुख
केवल भौतिक दुःख का
रूपान्तर मात्र है
जो जितना सुखी दिखता है
वही दुःख का भी
उतना बड़ा पात्र है

        ***

मानव देह में
शुभ-अशुभ का एक
अदृश्य सा संतुलन है
इसलिए तो जड़ जगत में
बिल्कुल ही व्यर्थ
किसी भी सुख का अन्वेषण है

        ***

शुभ-अशुभ से
मुक्त होने की चेष्टा से ही
प्रत्येक कृत्य करुणाजन्य होता है
क्रमश: ह्रदय भी
अनुगामी होकर
पवित्र और धन्य होता है

        ***

किसी से
कुछ कहने के लिए
कुछ अपना भी होना चाहिए
दूसरों की बातें तो
खोया हुआ स्वप्न है
उस स्वप्न को
अवश्य ही खोना चाहिए .


Saturday, March 15, 2014

तुम्हें कौन सा रंग लगाना है ?

फागुनी फुहारों का
जब ऐसा अगियाना है
तो यौवन के खुमारों को
भला क्यों न उकसाना है ?

हूँ.... अच्छा बहाना है
तुम्हें तो बस
बहकना है और बहकाना है
या इस रंग के बहाने
तुम्हें कौन सा रंग लगाना है ?

ठीक है , तुम्हारे जी में
जो-जो आये वही करो
पर मेरे प्राण पर जो
कालिमा चढ़ी है
उसे पोंछ कर बस मुझमें भरो !

रंग तो खूब बरसता रहता है
पर ये रोम-रोम है कि
बस तेरे लिए ही
हर पल तरसता रहता है ...

कुछ पल के लिए ही
मैं आंसुओं के संग होकर भी
कुछ अलग होना चाहती हूँ
और तेरी मदाई मदिरा को पी
मदगल में मदाना चाहती हूँ...

जिससे मेरी ये आँख हो जाए
तेरे लिए ही इतनी नशीली
और मेरी हर हाँक भी
हो जाए उतनी ही रसीली
ताकि तुम मेरे
लाज की गुलालों में
लाल हो ऐसे घुल-घुल जाओ
कि मैं कितना भी छुड़ाऊँ तो भी
अपने अंग से अंग लगाकर
तुम मुझमें ही जैसे ढुल-मुल जाओ...

तुम्हारा बहाना भी
उसी रंग में भींग कर
कहीं लजा न जाए
और जो सोचा भी न था कभी
कहीं उसे भी पा न जाए...

पर मेरे बहाने ऐसे
हुड़दंग न मचाओ गली-गली में
और अपना
अगन-रंग भी न लगाओ
ढुलकी-ढुलकी कली-कली में ....

तुम मेरे हो बस मेरे ही रहो
इधर-उधर ज्यादा न बहके
जाओ! अपने रंगों से कहो....

अरे रे रे रे .. सम्भालो न मुझे
मैं भी तो
अब बहक रही हूँ तुमसे
तब तो बहका-बहका सा
उमंग नहीं नहीं , तरंग नहीं नहीं
मतंग नहीं नहीं , मलंग नहीं नहीं
भंग नहीं नहीं , हुड़दंग नहीं नहीं
कुछ सूझ नहीं रहा है मुझको
टेढ़ा-मेढ़ा , उल्टा-सीधा न जाने
क्या-क्या कह रही हूँ मैं तुझसे....

तुम्हारे बहाना के बहाने ही
मेरा रोम-रोम भी
आज है भंग खाया
बस इतना समझ लो तुम
कि कैसा मुझपर
तुमने अपना रंग चढ़ाया .

Tuesday, March 11, 2014

चुप रहना ही बेहतर है .....

जब सब भोंपू लगाकर
गली-गली घूमकर
सबके दिमाग को फिराकर
बार-बार कहते हैं कि
गंदगी को जड़ से साफ़ करने वाले
वे ही सबसे अच्छे मेहतर हैं
तो ऐसी हालत में
मेरा चुप रहना ही बेहतर है....

गंदगी , गंदगी , गंदगी
उठते-बैठते , चलते-फिरते
सोते-जागते , खाते-पीते
बस गंदगी को ही
वे ऐसे बताते हैं कि जैसे
उनकी जिंदगी जिंदगी न होकर
कोई जादुई झाड़ू बन गयी हो
और मूंठ को पकड़े-पकड़े
दूसरों की किसी भी सफाई पर
मानो उनकी मुट्ठी ही तन गयी हो....

मेहतर से महावत बनना
उन्हें बहुत खूब आता है
तब तो अपने हाथी को
जहाँ-तहाँ भगा-भगा कर
वे साबित करते हैं कि
उन्हें भौं-भौं की आवाज
क्यों इतना भाता है....

वे मानते हैं कि
भौंकने वाले भी भौंक-भौंक कर
अपना दुम ज़रूर हिलाएंगे
जो नहीं हिलाएंगे वे भी भला
उनसे बचकर कहाँ जायेंगे ?

उन्हें ये भी लगता है कि
भौंकने वाले उनके भुलावे में आकर
अब काटना भूल गये हैं
पर वे खुद भूल जाते हैं कि
वे काटने के साथ-साथ
अब चाटना भी भूल गये हैं.....

उफ़!  जितनी गंदगी नहीं है
उससे कहीं ज्यादा तो
अब किसिम-किसिम के मेहतर हैं
जो बड़ी सफाई से
खुद ही गंदगी फैला-फैला कर
दावा करते हैं कि
वे किसी से किसी मामले में
कहीं से भी न कमतर हैं
तो ऐसी हालत में
मेरा चुप रहना ही बेहतर है .