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Friday, February 26, 2016

बालम बोलो क्यों वाम हुए ? .......

मैंने नहीं जगाया
सूरज खुद किरण कुँज ले कर आ गया
अपनी वेदी पर घुमा कर कोई मंतर बुलवा गया
और मुझे गले लगा कर तुझमें पिघला गया
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?

मैंने नहीं खिलाया
कलियाँ खुद ही खिल कर कसमसाने लगी
वो कुआंरी कोपलिया भी कसक कर कुनकुनाने लगी
तब सब अपने रज से तेरा नाम मुझपर गुदाने लगी
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?

मैंने नहीं चहकाया
चिड़ियाँ खुद ही चसक कर चहचहाने लगी
फिर मेरी डाली कंपा कर पत्तियों को दरकाने लगी
और मेरी अमराई को अंगराई दे दे कर तुझे बिखराने लगी
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?

मैंने नहीं बहाया
हवा खुद कहीं से उठी और बहक गयी
एक सिहरी सनसनाहट मन-प्राणों में मानो छिटक गयी
और तुझसे झड़कर तेरी ये कस्तूरी भी महक गयी
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?

मैंने नहीं बरसाया
भरा बादल आया और खुद ही बरस गया
फिर मुझसे धुला पुँछा कर भीतर से ऐसे हरस गया
सहसा चौंका , स्तब्ध हो मुझमें जैसे तुझे परस गया
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?

मैंने नहीं गवाया
गीत खुद ही अधरों पर आ गाने लगा
एक सुमनित सुमिरनी से गूँथ कर नया प्राण पाने लगा
और सब दिशाओं से गूँज-गूँज कर तेरा ही स्वर आने लगा
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?

मैंने नहीं नचाया
नाच खुद ही खुद को नचाने लगा
फिर मेरी लाज को सतरंगी चुनर बना कर लहराने लगा
और मेरे मना करने पर भी रोम-रोम में तुझे ही थिरकाने लगा
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?

तेरी सौं सच कहती हूँ-
मैंने नहीं बुलाया
चाँद खुद ही घर आ गया
और मतवाला मधु से मुझे ऐसे नहला गया
जैसे वही मदनलहरी से लहरा लहरा कर मधुयामिनी को पा गया
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
मेरी सौं सच सच कहो -
इस वामा के ही तो तुम नाम हुए . 

Monday, February 22, 2016

नहीं अट पायेगी मेरी कविता.......

कोई बम फोड़े या गोली छोड़े
या आग लगाये
अपनी ही बस्ती में
मैं तो डूबी रहती हूँ
बस अपनी मस्ती में ....
लिखती रहती हूँ प्रेम की कविता
कभी आधा बित्ता कभी एक बित्ता
कभी कोरे पन्नों को
कह देती हूँ कि भर लो
जो तुम्हारे मन में आए -
भावुकता , आत्मीयता , सरलता , सुन्दरता
या भर लो विलासिता भरी व्याकुलता
या फिर कोई भी मधुरता भरी मूर्खता .....
कैसे कह दूँ कि नहीं पता -
कि नप जाएगी मेरी कविता
किसी भी शाल या शंसनीय पत्रों के फीता से
या फिर मुझे ये कहना चाहिए
कि पता है मुझे -
बहुत ही छोटा है सारा फीता
जिनमें कभी भी नहीं अट पायेगी
मेरी कविता .

Tuesday, February 16, 2016

बीनी बीनी बसंत बानी ......

बीनी बीनी बसंत बानी
तरसे तरसे तन्वी तेवरानी
अंग अंग अजबै अंखुआनी
पोर पोर पुरेहिं पिरानी
सिरा सिरा सिगरी सिकानी
रुंआ रुंआ रुतै रूमानी
सांस सांस सौंधे सोहानी
रिझै रिझै रमनी रतिरानी
मनहिं मनहिं मयूर मंडरानी
कहैं कहैं कइसे कहानी ?
सीझै सीझै सुलगे सधुआनी
तरसे तरसे तन्वी तेवरानी
बीनी बीनी बसंत बानी

बीनी बीनी बसंत बानी
सरसे सरसे सजनी सयानी
उड़ि उड़ि उछाह उसकानी
झूमत झूमत झनके झलरानी
सरकै सरकै समूचा सावधानी
बोलत बोलत बिहंसे बौरानी
अपने अपने अति अभिमानी
चिहुंक चिहुंक चले चपलानी
हुमकत हुमकत हेराये हुलरानी
चंपई चंपई चारुचाह चुआनी
बुंदन बुंदन बास बरसानी
सरसे सरसे सजनी सयानी
बीनी बीनी बसंत बानी .

Wednesday, February 10, 2016

सुनो रे आली ! .......

सुनो रे आली !

मेरे प्रिय की
हर बात है निराली !
वो मतवाला
मैं भी मतवाली
मतवाली हो कर मैं
कण- कण में
उस को ही पा ली !

सुनो रे आली !

प्रिय अलिक तो
मैं कुंचित अलका
प्रिय अधर तो
मैं अंचित अधर का !

प्रिय मनहर नयन
तो दृष्टि हूँ मैं
प्रिय है कल्पवृक्ष
तो इष्टि हूँ मैं !

प्रिय पद्म -कपोल
सुमन -वृष्टि हूँ मैं
प्रिय सौंदर्य -मुकुर
तो नव -सृष्टि हूँ मैं !

प्रिय ह्रदय तो
पुकार हूँ मैं
प्रिय श्वास तो
तार हूँ मैं !

प्रिय प्रकृति तो
श्रृंगार हूँ मैं
प्रिय प्राण तो
संचार हूँ मैं !

प्रिय शून्य तो
आधार हूँ मैं
प्रिय पिंड तो
भार हूँ मैं !

प्रिय रूप तो
मैं काया हूँ
प्रिय धूप तो
मैं छाया हूँ !

प्रिय सावन तो
घटा हूँ मैं
प्रिय इन्द्रधनुष तो
छटा हूँ मैं !

प्रिय है मलयज तो
सुगंध हूँ मैं
प्रिय प्रसुन तो
मकरंद हूँ मैं !

प्रिय सरस नीर
मैं गम्भीरा सरिता
प्रिय लोल लहर
मैं मृदु पुलकिता !

प्रिय वन कुञ्ज तो
मैं मुग्धा बयार
प्रिय जलकण तो
मैं मधुर फुहार !

प्रिय स्वर्ण निकष
तो मैं कनक -कामिनी
प्रिय गंभीर गर्जन
तो मैं स्निग्ध दामिनी !

प्रिय है अम्बर
तो विस्तार हूँ मैं
प्रिय है धरा
तो आकार हूँ मैं !

प्रिय प्रकाश तो
मैं झलमल हूँ
प्रिय रात तो
मैं कलकल हूँ !

प्रिय अरुण तो
अरुणिमा हूँ मैं
प्रिय चन्द्र तो
मधुरिमा हूँ मैं !

प्रिय स्वप्न तो
जागरण हूँ मैं
प्रिय चित्त तो
चिंतवन हूँ मैं !

प्रिय उत्सव तो
उद्गार हूँ मैं
प्रिय प्रलय तो
हाहाकार हूँ मैं !

प्रिय आनन्द तो
मुदित हास हूँ मैं
प्रिय विषाद तो
अटूट आस हूँ मैं !

प्रिय अर्घ तो
अर्पण हूँ मैं
प्रिय तृषा तो
तर्पण हूँ मैं !

प्रिय रामरस तो
खुमारी हूँ मैं
प्रिय बाबरा तो
तारी हूँ मैं !

प्रिय यौवन मद तो
क्रीड़ा हूँ मैं
प्रिय परिरम्भन तो
व्रीड़ा हूँ मैं !

प्रिय राग तो
गीत हूँ मैं
प्रिय पुलक तो
प्रीत हूँ मैं !

प्रिय बिंदु तो
मैं रेखा हूँ
प्रिय लिखे तो
मैं लेखा हूँ !

प्रिय मौन तो
मैं वाणी हूँ
प्रिय वैभव तो
मैं ईशानी हूँ !

प्रिय मिलन तो
वियोग हूँ मैं
प्रिय जप तो
योग हूँ मैं !

प्रिय नाद तो
वाद्य हूँ मैं
प्रिय ओंकार तो
आद्य हूँ मैं !

प्रिय ध्यान तो
अभ्यर्चना हूँ मैं
प्रिय तप तो
प्रार्थना हूँ मैं !

प्रिय संकल्प तो
सिद्धि हूँ मैं
प्रिय विषय तो
वृद्धि हूँ मैं !

प्रिय रत्न तो
कनि हूँ मैं
प्रिय शंख तो
ध्वनि हूँ मैं !

प्रिय अपरिमित तो
परिधि हूँ मैं
प्रिय निरतिशय तो
निधि हूँ मैं !

सुनो रे आली !

मैं प्रिय की प्रिया !
प्रतिपल एक ही हैं
कहने को दो हम !
महासुख ने ही
हर घड़ी , हर घड़ी
हमें किया है वरण !
तब तो हर बात है
इतनी निराली !

सुनो रे आली !

Wednesday, February 3, 2016

एक रंग में रंगे हैं ......

एक रंग में रंगे हैं गिरगिट
गला जोड़कर , गा रहे हैं गिटपिट-गिटपिट

एक रंग में रंगे हैं मकड़े
सफाई-पुताई को ही झाड़े , झाड़ू पकड़े

एक रंग में रंगे हैं छुछुंदर
कब किस छेद से बाहर , कब किस छेद के अंदर

एक रंग में रंगे हैं मेंढक
लोक-वाद लोककर , जाते हैं लुढक-पुढक

एक रंग में रंगे हैं साँप
जब-तब केंचुली झाड़कर , देते हैं झाँप

एक रंग में रंगे हैं घड़ियाल
घर-घर घुस जाते , लिए जाली जाल

एक रंग में रंगे हैं बगुले
गजर-बाँग लगा , लगते हैं बड़े भले

एक रंग में रंगे हैं गिद्ध
मुर्दा-मर्दन का अंत्येष्टि करके , हुए प्रसिद्ध

एक रंग में रंगे हैं लोमड़ी
मुँह से लहराकर , रसीले अंगूरों की लड़ी

एक रंग में रंगे हैं सियार
यार-बाज़ी के लिए , एकदम से तैयार

एक रंग में रंगे हैं हाथी
हथछुटी छोड़ , हों चींटियों के सच्चे साथी

एक रंग में रंगे हैं गधे
शेर की खाल ओढ़ने में , कितने हैं सधे

इसी एक रंग से रंगती हैं सरकार
रँगा-रँगाया , रंगबाज़ , रंगरसिया, रंगदार

जिनके हाथों के बीच के हम मच्छड़
जाने कब ताली पीट दे या दे रगड़

इनसे बचने का तो एक भी उपाय नहीं
हाँ! जी हाँ! हम मच्छड़ ही हैं कोई दुधारू गाय नहीं .