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Friday, March 18, 2016

आँखों में सरसों फूला .....

आँखों में सरसों फूला
फागुन अपना रस्ता भूला
पहुँच गया मरुदेश में
जित जोगी के वेश में 

चिमटा बजाता , अलख जगाता
मस्ती में प्रेम - धुन गाता
प्रेम माँगता वह भिक्षा में
जित जोगिन की प्रतीक्षा में

कभी तो झोली भर जाएगी
जोगिनिया उसकी दौड़ी आएगी
अंबर से या पाताल से
वर लेगी उसे वरमाल से

हरा , गुलाबी , नीला , पीला
प्रेम का रंग हो इतना गीला
सब बह जाए उसी धार में
सुख सागर के विस्तार में

धुनिया का बस एक ही धुन
हर द्वार पर करता प्रेम सगुन
इस फागुन में सब रस्ता भूले
औ' आँखों में बस सरसों फूले .

Friday, March 11, 2016

हरफ़ों में ........

बहुत दफ़न हैं हरफ़ों में , हम भी हो जायेंगे
उन बहुतों के बीच , कभी-कभी दिख भी जायेंगे

कुछ हरफ़ उठा वे लेंगे तो कुछ हरफ़ पकड़ लाएंगे
कुछ हरफ़ खुद आएंगे तो वे कुछ हरफ़ ले आएंगे

यक़ीनन हरफ़-हरफ़ हम न कभी पढ़े जाएंगे
व उनके हरफ़ों से ही हरफ़-बहरफ़ गढ़े जायेंगे

अगरचे ये हमाक़त ही तो हमारी जिंदगी है
गोया हरफ़ों के बंदीखाने में अक़दस बंदगी है

बखत की बंदिशें हैं और ये ख़यालात बेमिजाज़ी है
आज और अभी हरफ़ों की जीती हुई हर बाजी है

दफ़न हो जाएंगे हम पर ये हरफ़ ख़ाक न होंगे
अजी !शोला-ये-शौक है ये जो कभी शाक न होंगे . 

Thursday, March 3, 2016

चुम्मा पर चुम्मा .......

राजा जी !
आपके रोज-रोज के
ये आम सभा वो खास सभा
ये पक्षी भाषण तो वो विपक्षी भाषण
कभी ये उद्घाटन तो कभी वो समापन ....
फिर कभी ये मीटिंग तो कभी वो सेमीनार
नहीं तो ये पार्टी-फंक्शन नहीं तो वो तीज -त्यौहार
कुछ नहीं तो ये बीयर बार नहीं तो वो डांस बार
ऊपर से आये दिन जनता दरबार
तिस पर बहस , बयान , ब्रेकिंग न्यूज और समाचार .....
दिखाने के लिए ये गाँव और वो देहात
देखने के लिए ओवर ब्रिज और वो दस लेन वाला पाथ
फिर बात -बेबात पर भर लेते हैं फॉरेन उड़ान
जैसे ठप पड़ा हो वहां का भी सब काम...........

राजा जी !
दिन-रात यही सब देखकर मैं पक गयी हूँ
आपकी महिमा सुन ऊबकर , चिढ़कर मैं थक गयी हूँ
बहुत हुआ , अब यही कहूँगी -
राजा जी ! मत मरो राज में
अब मुझको दो न चुम्मा
मैं तो बस तुमसे चुम्मा मांगू
मत पकड़ाओ अपना नौटंकी वाला झुनझुन्ना ........
पता है ये जो गहना , जेवर , गाड़ी , बँगला हैं न
उसे तुम हमारे लिए ही करते रहते हो
हर साल दुगुना , तिगुना , चौगुन्ना
पर उससे मैं नहीं खुश हूंगी , होगा बस आपका मुन्ना
मैं तो मांगू तुमसे , अब तो बस चुम्मा
राजा जी ! मत मरो राज में
मुझको दो न चुम्मा

ओ मेरी हठीली रानी जी !
हो भी जाओ थोड़ी सयानी जी
कभी राजा जी नहीं मरते हैं राज में
बस जनता मरती है उनके राज में
और हमें तो व्यस्त रहना पड़ता है
बस दिखावे के लिए काम काज में
फिर तो हमारी रोजी या मर्जी जब चाहे हम
उनको ही पकड़ा देते हैं कोई भी झुनझुन्ना ............
बस दो-चार उटपटांग बोलने भर की देरी है
उसी को वे खींचातानी करते-करते
बढ़ा देते हैं कई-कई गुन्ना
फिर अपने में ही मरते-कटते हैं
और तेरे राजा जी को ही रटते हैं
जैसे वे हों कोई दूधपीते मुन्ना ........... 

कुछ तो समझो , मेरी भड़कीली रानी जी !
हम तो बस अपने फॉरेन वाले फादर के
रूल -ऑडर को थोड़ा आगे बढ़ाते हैं
उनमें ही फूट डालकर बस अपने फुट पर नचाते हैं
वे ही तो हैं हमारे एकदम से असली झुनझुन्ना ........

अब तुम ही बताओ , मेरी भोली रानी जी !
भला राजा क्यों मरे राज में
भले राज मरे हमारे ही राज में
वो भगवान भी तो नहीं जान सके हैं कि
हम होते हैं कितने भीतरगुन्ना

अत: हे नखरीली रानी जी !
मेरे लिए तुम लगी रहो या तो दिन -रात पूजा -पाठ में
या मर्जी तेरी ऐश -मौज करो अपने ठाठ में
चुन कर कोई भी पसंद का अपना झुनझुन्ना
और हम हर बार यूँ ही राजा बनकर
करते रहे धुम-धुम-धुम्मा-धुम्मा .............

फिर तुम अगर ख़ुशी-राजी हो तो
एक तुमको ही क्या
इसको , उसको , उसको , सबको
बस दिन -रात हम देते रहे
चुम्मा पर चुम्मा .