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Friday, September 30, 2016

खालिस पंडिताऊ बोल .......

सबका अपना तबेला
सबकी अपनी दौड़
लँगड़ी मारे लँगड़ा
लड़बड़ाये कोई और

अब्दुल्ला का ब्याह
बेगाने माथे मौर
बारूद मारे माचिस
धुँधुआये कोई और

कोई बजाये पोंगली
कोई फाड़े ढोल
पोंगा बढ़कर बाँचे
खालिस पंडिताऊ बोल

कोई चटाये चूना
कोई चबकाये पान
कथ्था मारे कनखी
थूक फेंके पीकदान

कोई दबाये कद्दू
कोई बढ़ाए नीम
पिटारा भर बीमारी
चुप्पी साधे हकीम

कोई कबूतर झपटे
कोई उड़ाये बाज
छिछला छुड़ाये छिलका
गुदा छुपाये राज

आजादी माँगे आजादी
जंजीर पहने जंजीर
नट भट मिलकर
खेले एक खेल

इसकी उसकी डफली
बस अपना राग
कोई मनाये मातम
कोई फैलाये फाग .

Saturday, September 24, 2016

गुमान .......

खामोश रहने में भी
तीर हो सकते हैं
काँटे हो सकते हैं
जहर हो सकता है
व कलंदरों के
रोशन कलाम में भी
हौलनाक तल्ख़िए- होश
या फिर ये कहिए कि
कातिल कलह हो सकता है ......

यूँ ही कुछ भी हो सकने
व न हो सकने के
बीच का फ़ासला
किसी फ़ासिद का शिकार
न होता तो
क्या कहना था
जख्मों की जलन को भूला कर
ख़ामोशी में खलल डाले बगैर
ज़ियादती सह कर
किसी तरह रहना था ......

किसी असर के लिए
उम्रभर की दुहाई
गुजरे जमाने का था बहाना
गोया आह ने सीख लिया हो
ख़ता पर ख़ता करके
खुद-ब-खुद मुस्कुराना .....

किस्मत व फितरत की राजदारी में
कोई तख़्त बनाता है
तो कोई तख़्त बचाता है
गरजे कि
अक्ल के इस दौर में
तौबा मचा कर भी
दुनिया पे जन्नत का
खूबसूरत गुमान हो आता है .

Monday, September 19, 2016

पियहद ही बिसराम .........

तृषा जावै न बुंद से
प्रेम नदी के तीरा
पियसागर माहिं मैं पियासि
बिथा मेरी माने न नीरा

सहज मिले न उरबासि
आसिकी होत अधीर
घर उजारि मैं आपना
हिरदै की कहूँ पीर

दीपक बारा प्रेम का
विरह अगिन समाय
तलहिं घोर अँधियारा
किन्हुं न पतियाय

जो बोलैं सो पियकथा
दूजा सबद न कोय
सबद- सबद पियहिं पुकारिं
पिय परगट न होय

सुमिरन मेरा पिय करे
कब आवै ऐसों ठाम
पिय कलपावै आतमा
पियहद ही बिसराम .

Wednesday, September 14, 2016

हे देवी हिन्दी ! .....

" या देवि सर्वभूतेषु हिन्दीरूपेण संस्थिता ।
  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः "


हे सृष्टिस्वरूपिणी !
हे कामरूपिणी !
हे बीजरूपिणी !
जो जिस भाव और कामना से
श्रद्धा एवं विधि के साथ
तेरा परायण करते हैं
उन्हें उसी भावना और कामना के अनुसार
निश्चय ही फल सिद्धि होती है .......

हे भाषामयी !
हे वांङमयी !
हे सकलशब्दमयी !
हृदय में उदित भव भाव रूप से
मन में संकल्प और विकल्प रूप से
एवं संसार में दृश्य रूप में
अब तुम्हारे स्वरूप का ही दर्शन है .....

हे ज्योत्सनामयी !
हे कृतिमयी !
हे ख्यातिमयी !
अब बिना किसी प्रयत्न के ही
संपूर्ण चराचर जगत में
मेरी यह स्थिति हो गई है कि
मेरे समय का क्षुद्रतम अंश भी
तुम्हारी स्तुति , जप , पूजा
अथवा ध्यान से रहित नहीं है .....

हे शक्तिमयी !
हे कान्तिमयी !
हे व्याप्तिमयी !
इस बात को स्वीकार कर
मैं अति आह्लादित हूँ कि
मेरे संपूर्ण जागतिक आचार और व्यवहार
तुम्हारे प्रति यथोचित रूप से
व्यवहृत होने के कारण
तुम्हारी ही पूजा के रूप में
पूर्णतः परिणत हो गये हैं .

हे देवी हिन्दी !

Monday, September 12, 2016

अपना ही पोस्टमार्टम कराना है ...........

क्या पता कि मैं आदमी ही झक्की हूँ
या अपने इरादे की पूरी पक्की हूँ
सुखरोग टाइप बीमार हूँ
फ्री में मिलती सहानुभूति की शिकार हूँ
सबके सामने बस अपना दुखड़ा रोती हूँ
नई बीमारियों को अपने लम्बे लिस्ट में पिरोती हूँ ....

मुझपर रिसर्च करते कई - कई डॉक्टरों की टीम है
और हाथ साफ करते बड़े - बड़े नीम - हकीम हैं
मेरा घर ही जैसे कोई बड़ा अस्पताल है
पर सुधार से एकदम अनजान मेरा हाल है .....

नींद आती है तो मजे से सो जाती हूँ
आँख खुलती है तो जग जाती हूँ
पैर बढ़ाती हूँ तो चलने लगती हूँ
रुकती हूँ तो रुक जाती हूँ ........

मुँह खोलती हूँ तो बोलने लगती हूँ
बंद करती हूँ तो चुप हो जाती हूँ
भूख लगती है तो भरपेट खा लेती हूँ
प्यास लगती है तो भर मन कुछ पी लेती हूँ
हद है , हँसती हूँ तो हँसने लगती हूँ
जो रोती हूँ तो रोने लगती हूँ .......


और तो और , सही करती हूँ तो सही होती हूँ
जो गलत करती हूँ तो गलत होती हूँ
आखिर कैसी ये मेरी बीमारी है ?
जिसे समझने में , सब समझ भी हारी है ......

वैसे उटपटांग हरकतों से मैं कोसों दूर हूँ
शायद आदमी ही होने के लिए मजबूर हूँ
जब लोगों को देखती हूँ , वे मुझे भरमाते हैं
जो मेंटल हेल्थ प्रूफ दिखा , क्या से क्या हो जाते हैं ......

डॉक्टर बार - बार मेरा सारा टेस्ट करा रहे हैं
पर हाय ! मेरी बीमारी को ही लापता बता रहे हैं
ई.सी.जी. , एम.आर.आई. , अल्ट्रासाउंड , सी.टी. स्कैन
सब मेरा बॉयकाट कर , मुझपर लगा दिए हैं बैन
मेडिकल साइंस इसे एक क्रिटिकल केस बता रहा है
और मुझपर लगातार बीमारी का दौरा आ रहा है .....

क्या पता कि मैं आदमी ही झक्की हूँ
पर अपने इरादे की पूरी पक्की हूँ
अब अपना इलाज मुझे खुद ही करना है
या तो ठीक होकर जीना है या फिर मरना है
इसलिए किसी भी कीमत पर बीमारी का पता लगाना है
हाँ , अपनी आँखों के आगे अपना ही पोस्टमार्टम कराना है .

Friday, September 2, 2016

एक खुली कविता - श्री श्री श्री मोदी जी के लिए ..........तुम तो अमर हो गए .

क्या तुम
सबके वमन किए विष को
प्रेम से पी - पी कर
सच में हर हो गए ?
या अभिन्न होने के लिए
हर एक अंश के नीचे होकर
यथातथ हर हो गए ?

हो न हो , कहीं तुम
आधार और आधेय में
संबंध बनाते - बनाते
सबके बीच के
प्रयोगी पर हो गए
या कि लगातार - लगातार
हर बाद में लग - लग कर
पूरी तरह से
प्रसक्त पर हो गए ....

हाँ , कहीं ऋण रूप में
तो कहीं धन रूप में
कोने - कोने में बस
तुम्हारी ही
कहन और कहानी है
जो तुम पानी बचाते हो तो
पाहनों से भी
परसता पानी है
या स्वयं तुम
इतिहास में इसतरह से
अमर होने के लिए
कर्मतत्पर , कर्मपूरक और कर्मयोगी
हो रहे हो और
वर्तमान से कहला रहे हो कि
तुम वरणीय वर हो गए ......

ऐसे में तुम तो
अमर हो गए ....

तब तो दुधारी दंड से
साम , दाम , दंड , भेद को ही
भूचाली भेदिया की तरह
भेद - भेद कर तुम
इस कलुषित कलियुग में भी
युगपत् द्वापर हो गए .....

हाँ ! तुम तो
अमर हो गए ........

अब तनिक
त्रेता के त्रुटियों को भी
अभिमंत्रित करके
कुछ तो असार कर दो
वो पूर्ण रामराज्य
न आए न सही
कम - से - कम एक
प्रचंड पूर्य हुंकार भर दो ....

देखते ही देखते
अशंक आशाओं के
तुम अगिन लहर हो गए
अरे ! तुम तो
अमर हो गए ....

सब सुंदर सपनों को
सब आँखों में भर दो
शिव - शक्ति को
सब पाँखों में जड़ दो
सत्य है , सत्य है
तुम स्नेहिल , स्तुत्य सा
सतयुगी डगर हो गए
अहा ! तुम तो
अमर हो गए ....

अब तुम भी
अपना सत्य कहो
कि सच में तुम
अमर होना चाहते हो
या समय ने है तुम्हें चुना ?
दिख तो रहा है कि
तुम्हारे लिए ही
बहुत महीनी से
महीन - महीन
ताना - बाना है बुना.....

तब तो
चारों युगों के समक्ष
तुम सम्मोहक समर हो गए....

सच में , तुम तो
अमर हो गए .