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Saturday, September 24, 2016

गुमान .......

खामोश रहने में भी
तीर हो सकते हैं
काँटे हो सकते हैं
जहर हो सकता है
व कलंदरों के
रोशन कलाम में भी
हौलनाक तल्ख़िए- होश
या फिर ये कहिए कि
कातिल कलह हो सकता है ......

यूँ ही कुछ भी हो सकने
व न हो सकने के
बीच का फ़ासला
किसी फ़ासिद का शिकार
न होता तो
क्या कहना था
जख्मों की जलन को भूला कर
ख़ामोशी में खलल डाले बगैर
ज़ियादती सह कर
किसी तरह रहना था ......

किसी असर के लिए
उम्रभर की दुहाई
गुजरे जमाने का था बहाना
गोया आह ने सीख लिया हो
ख़ता पर ख़ता करके
खुद-ब-खुद मुस्कुराना .....

किस्मत व फितरत की राजदारी में
कोई तख़्त बनाता है
तो कोई तख़्त बचाता है
गरजे कि
अक्ल के इस दौर में
तौबा मचा कर भी
दुनिया पे जन्नत का
खूबसूरत गुमान हो आता है .

11 comments:

  1. aur baat jehan se nikali ho teer ki tarah
    to tarkash ko bhi khud pe itminaan ho aata hai
    very nice amrita !

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  2. किसी असर के लिए
    उम्रभर की दुहाई
    गुजरे जमाने का था बहाना
    गोया आह ने सीख लिया हो
    ख़ता पर ख़ता करके
    खुद-ब-खुद मुस्कुराना .....



    बहुत खूब ... उम्दा !!!

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  3. lajawab....hamesha ki tarah.....kaisi hai amrita ji aap ?

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  4. वाह ! सुभानअल्लाह ! दुनिया जन्नत उन्हीं के लिए है जो इसे जन्नत बनाने का माद्दा भी रखते हैं..

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  5. अक्ल के इस दौर में
    तौबा मचा कर भी
    दुनिया पे जन्नत का
    खूबसूरत गुमान हो आता है .

    गुमान ही सही दुनिया ज़न्नत तो लगे .

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  6. ‘‘किस्मत व फितरत की राजदारी में
    कोई तख़्त बनाता है
    तो कोई तख़्त बचाता है’’

    सच का सामना करती प्रभावशाली कविता ।

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  7. ये फितरत की राज़दारियाँ हैं कि -

    गोया आह ने सीख लिया हो
    ख़ता पर ख़ता करके
    खुद-ब-खुद मुस्कुराना .....

    बहुत खूबसूरत.

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  8. अक्ल के इस दौर में
    तौबा मचा कर भी
    दुनिया पे जन्नत का
    खूबसूरत गुमान हो आता है .
    ....क्या खूब लिखा है...लाज़वाब

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  9. किस्मत व फितरत की राजदारी में क्या-क्या नहीं बनता ? हम सब रात-दिन खूबसूत गुमान उगाते हैं।

    बेहतर है.

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  10. अक्ल के इस दौर में
    तौबा मचा कर भी
    दुनिया पे जन्नत का...
    खूबसूरत गुमान हो आता है....यकीनन ऐसा ही होता है..सुंदर सृजन..

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