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Saturday, December 31, 2016

कि मौन सर्जन प्रक्रिया है .....

सूक्ष्म- चित् ऐसे सोया है
कि मौन सर्जन प्रक्रिया है
पुनः कोई रस- गीत गा दो
प्राण! तुम अब मुझे जगा दो

इंद्रधनुओं के रंग छूकर
हों कोमल भाव मुखर
उर- विषाद को गिरा दो
प्राण! तुम मुझे सिरा दो

ताप तुमसे कहूँ मैं गोपन
धूम से भरा- भरा है मन
लदा हुआ तमस हटा दो
प्राण! तुम संशय मिटा दो

है ऊब बाहर के जगत से
या भीतर रार है सत से
ऊब- रार में न उलझा दो
प्राण! तुम मुझे सुलझा दो

प्राण! तुम शब्दों को सहला दो
अनभिव्यक्त भाषा ही कहला दो
कि मौन सर्जन प्रक्रिया है
औ' सूक्ष्म- चित् सोया है .


*** नव वर्ष संपूर्ण वैभव से सुशोभित हो***
            ***शुभकामनाएँ***